काम वृत्ति की वीभत्स व्याख्या न इष्ट है, न कल्याणकारी।
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काम वृत्ति की वीभत्स व्याख्या न इष्ट है, न कल्याणकारी।
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कमल पुष्प पर विराजमान लक्ष्मी देवी का प्रमुख लक्ष्मी सूक्तम् जो क्रोध, लोभ, काम वृत्ति से मुक्ति दिला कर धान्य, धन, सुख-ऐश्वर्य की प्राप्ति दिलाता है।
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मानवीय शरीर में जिस श्रद्धा, मेधा, क्षुधा, निद्रा, स्मृति आदि अनेक वृत्तियों का समावेश है, उसी प्रकार काम वृत्ति भी देवी की एक कला रूप में यहाँ निवास करती है और वह चेतना का अभिन्न अंग है।
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मानवीय शरीर में जिस श्रद्धा, मेधा, क्षुधा, निद्रा, स्मृति आदि अनेक वृत्तियों का समावेश है, उसी प्रकार काम वृत्ति भी देवी की एक कला रूप में यहाँ निवास करती है और वह चेतना का अभिन्न अंग है।
6.
परकीया से यहाँ तात्पर्य निकृष्ट काम वृत्ति से न होकर शुद्ध चिन्मय भावाकर्षण की वह स्थिति है जहाँविरह संभव नहीं होता अमिलन में भी मिलन की सत्ता विराजित है स्वकीया भाव में नित्य मिलन की बाध्यता ही प्रेमा कर्षण को क्षीण कर देती है!
7.
इसके बाद उन्होंने अपने ही जीवन में उसे यौन लिप्सा से आगे बढ़ाकर कामना इच्छा तथा वासना तक पहुँचा दिया उसके बाद जुंग और एडलर ने उस काम वृत्ति की व्याख्या कामाध्यात्म के रूप में की और उसे आनन्द, उल्लास की सहज सुलभ प्रवृत्ति एक साथ जोड़ दिया ।।